अनकही दास्तान


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ज़िंदगी है पास पर जीना नहीं आता,
हँसकर भी अब खुश रहना नहीं आता,
दौड़ती हूँ हर रोज़ पर चलना नहीं आता,
समझाते हैं सभी पर मुझे समझना नहीं आता…

कोई तो हो जो मुझे जीना सिखा दे,
रख हिम्मत फिर उठ कर चलना सिखा दे,
हँसना सिखा दे चहकना सिखा दे,
बिखरे हर पलों को ख़ुद में संजोना सिखा दे…

बहुत कुछ है इस दिल में जो बोलना है मुझे,
हर राज़ इस दिल का अब खोलना है मुझे,
सुन लो मुझे फ़ुर्सत से कोई अब,
होकर बेखौफ़,
दिल खोल आज सबकुछ बोलना है मुझे..,

जिस्म का है साथ पर रूह कहीं खो सी गई है,
चाहत है दिल में पर उम्मीद जैसे बुझ सी गई है,
दर्द-ए-दिल और हक़ीक़त की इस लड़ाई मे बस,
बोझल हर साँस हर नब्ज़ अब थम सी गयी है…

चली जा रही हूँ भीड़ में इस दुनिया की महफ़िल मे,
तन्हाइयाँ हैं साथ हर राह हर मंज़िल पे,
थक जाउंगी तो बुला लूँगी तुझे ए खुदा,
ले जाना मुझे नींद में ही सुला के…

नींद है आँखो में पर, चैन नही है साँसों में मेरी,
दर्द है या ङर है कोई,
समझना ही बाकी है बस…!!

©हिताक्षी बावा